Sunday, December 20, 2009

कौन कहता है इस देश में महंगाई हैं. यह सरासर झूट है भाई - सांसद को संसद में १२ रूपये में खाना इस कमरतोड़ महंगाई में उपलब्ध है


The news clip is of Rajasthan Patrika

देश की जनता चाहे  भूखी सोये या फिर ९० रूपये किलो की दाल देख, सपने में भी खाने की हिम्मत न जुटा पाए मगर इस देश के राजनितिक ठेकेदार जिनके हाथो इस देश की बागडोर है उनको कोडियों के भाव सब वस्तुए मुनासिब होनी आवश्यक हैं. बी.पी.एल. श्रेणी तो समझ आती है मगर देश के सांसद कौनसी श्रेणी  में आते है यह तो उन्ही से पूछना होगा . सांसद को संसद में  १२ रूपये में खाना  इस कमरतोड़ महंगाई में उपलब्ध है.  डेढ़ रूपये में इक कटोरी दाल , एक रूपये की रोटी , खीर मात्र ५.५० में, बटर चिकन २७ रूपये में .......  अब यह अलग बात है कि अमूल बटर खुद २४ रूपये में मिलता है आमजन को , सरकारी सस्ती दाल ४७ रूपये में  ........


कौन कहता है इस देश में महंगाई हैं. यह सरासर झूट है भाई . संसद में महंगाई नहीं तो देश में कैसे महंगाई हो सकती है . संसद में बैठ कर ही तो नीति निर्धारण करने वाले, देश को हांकने वाले बैठते हैं. जब वहां सब कुछ ठीक है तो देश में ठीक होगा ही . बहुत सीधी सीधी बात है .
सब्सिडी जनता को मिल रही है तो जनता द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधि कैसे उससे अछुते रह सकते है ? हिंदुस्तान की जनता की चिंता करने वाले सांसदों को बिना टेंशन के चिंता करने के लिए सब सुविधाए उपलब्ध करवाना आखिर गलत हो ही कैसे सकता है ? और aap कौन होते हें सही गलत का निर्णय करने वाले वो तो संसद में बैठे सांसदों को करने का ठेका आपने हमने पांच वर्षों के लिए दे ही दिया है. अब क्या खाक कर लेंगे आप और हम. तभी तो संसद की केंटिन के लिए ५.३ करोड़ की सब्सिडी सिर्फ इस वित्तीय वर्ष के लिए दी गई हैं. तक़रीबन १ लाख रूपये की औसत सब्सिडी इक सांसद के लिए कुछ ज्यादा भी तो नहीं है . आखिर क्यों चिंतित है भाई .  अभी कुछ समय पहले सांसदों के रिश्तेदारों और परिचितों को भी हवाई , रेल यात्रा में मुफ्त यात्रा का तोहफा मिल चूका है . आप भी बनाओ सांसदों से नजदिकिया ताकि आप भी ले सकते हैं इन सुविधाओ का लुत्फ .


मेरे दिल की बात यह है कि आम जनता के लिए भी संसद की कैंटीन सुविधा उपलब्ध करवा दी जाये,  हाँ चाहे तो डबल रेट में भी देदे तब भी सहर्ष स्वीकारयोग्य होगा. मगर इक विनती कि इस सुविधा को उपलब्ध करवाने के लिए किसी आयोग का गठन  मत करना , वरना डेढ़ रूपये कटोरी दाल और इक रूपये में इक रोटी , २७ रूपये में चिकन से इस देश की लम्बे समय तक महरूम हो जाएगी.

Thursday, December 17, 2009

dil ki baat

हूँ में जिन्दा तेरे लिए
तू माने  या न माने
मेरे जीवन की सांस
बस तेरे लिए
आह भरे तो तड़फे दिल मेरा
वाह करे तो धड़के  दिल मेरा
बस कर कुछ न कुछ मेरे लिए
कि धड़कन मेरे दिल की तेरे दिल से चले .................

Monday, November 30, 2009

वाह रे मेरा भारत महान ! सांसदों को समय नहीं - देश अपनी रफ़्तार खुद चल रहा है

वाह रे मेरा भारत महान ! संसद का कल मखौल उड़ाया हमारे माननीय सांसदों ने ! १ मिनट कि कार्यवाही का खर्चा तक़रीबन २५००० रूपया लगता हैं. उसकी चिंता और न जनता कि चिंता है इन जन प्रतिनिधियों को . कल संसद का प्रश्न काल स्थगित किया गया किसी हल्ले गुल्ले के कारण नहीं विक्षी पार्टी के विरोध  के कारण नहीं स्थगित किया गया सिर्फ इसलिए कि सांसदों को समय नहीं था . वाह रे मेरा भारत महान. !!! इस देश को चलाने वाले
सांसद खुद चल कर न आये तो देश कैसे चलेगा समझ से परे है .
भारत  कि गैर जिम्मेदाराना जनता (माफ़ करना दिल में दर्द है इस लिए लिखा है..... ) के कारण ही यह सब हो रहा हैं. हम अपने से ऊपर उठ कर सोचे . अपने सोच का दायरा बढ़ाये तभी हम इन गैर जिम्मेदाराना जन प्रतिनिधियों के नखैल लगा सकते है अन्यथा उनकी नकेल हम पर तो लगी ही है .
 इक काम लोकसभाध्यक्ष कर सकती है कि कल के खर्चे कि सीधी सीधी कटौती सांसदों के भत्ते में से कर ली जाये. मगर इससे फर्क भी क्या पड़ेगा,  इनकी शान ओ शौकत कोई इन भत्तो से थोड़े ही बरक़रार रहती है.  इनको फर्क भी नहीं पड़ेगा हाँ देश कि जनता थोड़ी आत्म संतुस्ठ महसूस जरूर कर लेगी .

Wednesday, May 13, 2009

कल क्या होगा किसको पत्ता ? वोटर ख़ुद को नही मालूम उसने क्या किया ?

हिंदुस्तान का इक महापर्व कुछ लोगो को चुनने का ख़त्म हुआ । ५० प्रतिशत के लगभग जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग(उपयोग नही) किया। कुछ्ने मत देने के लिए मत दिया तो कुछ ने किसी के कहने पर दिया होगा। उनका प्रतिशत कम ही होगा जिन्होंने राष्ट्र धर्म निभाया होगा। खैर क्या कर सकते है भारत भाग्य विधाता..... भाग्य तो अब कल सवेरे खुलेगा अभी तो बंध है इ वी ऍम मैं.... नेताओ का भाग्य तो खुलेगा ही साथ ही भारत का भी भाग्य कल खुलेगा , तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी की किन हाथो में भारत अब खेलेगा। कौन हिंदुस्तान को चलायेगा अपनी मर्ज़ी के मुताबिक।
इक नया भविष्य लिखने की जुगत फिर से की जायेगी फिर नए दावे नए सपने दिखाए जायेंगे । जनता के लिए हम ही है इसका भी दम ठोका जाएगा। और हमेशा की तरह जनता फिर ठुक ही जायेगी।
अभी पौ बारह तो चेंनलो की आई हुई है , कल से ही शुरू हो गए देश के भविष्य की भविष्यवाणी करने को .... कितनी सही होगी सामने आजायेगा ... एसी कमरे स्टूडियो में बैठ कर शहरों में वोटर को सूंघ कर ट्रेंड बताने के इन दावो में कितनी सच्चाई है कल साफ़ हो जाएगा और फिर जब आकडे नही बैठेंगे तो कहेंगे कि वास्तव में मतदाता साइलेंट था। मन में कुछ और था उसके .... इत्यादि दलीले देकर फिर नई स्टोरी की तरफ़ मौड़ दिया जाएगा भोले भाले दर्शक को कुछ और दिखाने के लिए .......
जुगत बिठाने की कसरत शुरू होगई है , तोल मोल के बोल ..... सेटिंग्स टॉप लेवल पर शुरू, जो बेहतर मैनेजमेंट जानता है उससे "मेनेज" होगा हिंदुस्तान का "राज" मगर यह ख़ुद अभी राज ही है। सौदे होंगे आपस में वादे होंगे और इस सौदेबाजी से देश फिर पाँच वर्षो के लिए किसी के हाथो में होगा अगर सही सही वादे पुरे होते रहे तो नही तो फिर समर्थन वापस लेने की धमकी से ब्लैक मेलिंग होती rahegi ......
छुटभैया नेताओ की ठेकेदारी वाले डालो को अगर ठिकाने लगाना है तो फिर दिल कठोर कर कांग्रेस तथा भाजपा को मिल कर सरकार बना लेनी चाहिए , जिसकी सीटें ज्यादा उसको सत्ता "कॉमन मिनिमम प्रोग्राम" बना कर दूसरा दल विपक्ष में और फिर देश में वास्तव में ईमानदारी से इस तरह का वातावरण बनाया जाए की अगले आम चुनावो में जनता ख़ुद क्षेत्रीय दलों से ऊपर उठ जाए। इक राष्ट्र और दो दल बस दूर करे बाकि दलदल ....... तब तो हिन्दुस्थान का भविष्य स्वर्णिम दीखता है नही तो अंदाजा आप स्वयं लगा सकते है। जोड़ तोड़ की राजनीती से देश हित की निति बन पायेगी इसमे सौ प्रतिशत शक मुझे तो लगता है।
मेरा दिल है की मानता नही इसलिए कुछ न कुछ लिख ही देता हूँ कई मित्र कहते है की क्यों इतना लोड लेता है ? जो होना होगा वो होकर रहेगा ......... दुःख इस बात की आख़िर बदलने वाला ही बदलना नही चाहे तो फिर क्या बदल जाएगा ...... बिंदास हो कर अपनी टिपण्णी करे

Sunday, May 3, 2009

ऐसा क्यों नही हो सकता देश हित में

अभी तो बस चुनाव के कारन पत्र पत्रिकाओ अथवा टीवी चेनलोंमें बस गरमा गर्म मसाला ही पढने और देखने सुनने को मिलता है। बस बैठ बैठे में इक विचार आया कि राष्ट्र हित में मुख्य दल कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी को कोई कड़ा निर्णय लेना ही होगा । यह निर्णय दिल को मज़बूत रख कर दिमाग से लेना होगा क्योंकि दिल कमजोर और दिमाग मज़बूत होता है ।
देश में जिस कदर क्षेत्रीय दलों कि भरमार बढ़ रही है , वह चिंताजनक है, पिछले कुछ वर्षो से हम मिलीजुली सरकारों में मुख्य दलों कि मजबूरी और छोटे दलों का उनसे मोल भावः कर अपने हितों (देश हित नही ....) के लिए सौदेबाजी का नज़ारा देख चुके है। राष्ट्र को इसका नुकसान बड़ी कीमत देकर चुकाना पड़ रहा है। राष्ट्र कि उन्नति के लिए अब लगने लगा है कि दो दलों का होना ही उत्तम होगा। बहस का विषय हो सकता है मेरा यह सोचना , मगर मेरा दिल है कि दिमाग से उपजी बात आपके सामने रख रहा है।
पूर्वी राज्यों में क्या हो रहा है बहुतो को नही मालूम । अभी हाल ही में मेघालय में बीजेपी ने कांग्रेस कि सरकार को समर्थन दिया था , इसमे बुराई भी क्या है ? मुझे तो नही लगता ....
इस बार देश में हो रहे बिन मुद्दे के लोकतंत्र के इस महापर्व के नतीजे किसी भी इक दल को स्पष्ट बहुमत दिलवा पाएंगे मुश्किल जान पड़ता है । उस दशा में दोनों मुख्य दलों से इक निवेदन कि बजाय सौदे बाज़ी के दोनों मुख्य दल बैठ कर दिमाग से निर्णय ले देश हित में और इक नई मिशाल कायम करे । राष्ट्र हित का न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय कर हिन्दुस्थान को इक नई ऊंचाई देंगे ऐसा मेरा दिल से निवेदन है।
आपको भी ऐसा लगता होगा मेरे दिल का ऐसा मानना है ...........मेरे दिल के किसी एक कोने से आवाज आ रही है कि ऐसा ही होगा इस बार ....................

Sunday, March 22, 2009

दिल की बात आप तक

देश मे क्या हो रहा है किस को खबर ? क्या हो रहा है किस को चिन्ता ? सब अपने मे मस्त है ....
गाहे बगाहे चिन्ता जाहिर कर देते हे और बस इतिश्री ......
क्या ऐसे ही चलेगा ? कर्तव्य से विमुख तो हो ही नहि सकते ना जनाब .....
बस इस दिल मै कुछ हलचल होती है उसी को आपके सामने रख्नने की इच्छा लिये हाज़िर हु
मै हू न ना बतियाने को ..........................