Sunday, December 12, 2010

विकिलीक्स बॉलीवुड अंदाज में

खिसियाई बिल्ली खम्भा  नौचें. विकिलीक्स ने क्या लीक किया की सब गड़बड़झाला हो गया . विकिलीक्स के जूलियन असांजे  का जूनून भी काबिले तारीफ है . अपुन का तो कुछ है नहीं इसलिए चिंता नहीं . जिसका लीक हुआ उसकी बैंड बज गई. 
अमेरिका की चोधराहट समझ आ गई है सबको. अब भी नहीं आई तो सीख लो भाई फिर मत कहना की ध्यान नहीं रहा.
दबंग अमेरिका की दबंगता अब जाती दिख रही है . अमेरिका बदनाम हुआ भाई . (मुन्नी तो पहले ही थी) . अपुन को लगता है की ब्रेक के बाद अब अमेरिका का क्या होगा. आर्थिक रूप से खोखला सामाजिक रूप से कमजोर. शस्त्रों का व्यापर तो करने ही पड़ेंगे आतंकियों को तैयार. वो अलग बात है की तैयार किये से खुद ही घिर गया है और चोट खा चुका है. बुजुर्गो ने कहा भी तो है की बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से होय .
पहले तो अंगूर खट्टे होते थे अब तो आम भी खट्टे लग रहे है. मीठे का जमाना  गया .
अमेरिका बड़ा तीस  मारखां बनता था. अमेरिका के लिए रावण (असान्जे) ने बैंड बाजा बारात निकाल दी भाई . क्या लम्हे अब आये है इस बदमाश कम्पनी के. हिलेरी तभी तो कह रही है आई हेट लव(true) स्टोरी . 
विकिलीक्स ने ऐसी काइट्स उड़ाई की अब अंजाना अंजानी कहते भी नहीं बन रहा अमेरिका से. समझ नहीं आ रहा है की लफंगे परिंदे है कौन ? पहले ही चेताया था अमेरिका ने भारत को,  कि कुछ गड़बड़ विकिलीक्स करने वाला है इसलिए चिंता न करे वी आर फेमेली. 
असान्जे कह रहे है कि खेले है हम जी जान से  अमेरिका काहे को गुजारिश करता है कि इसे न दिखाऊ मेरी मर्जी में चाहे यह करू में चाहे वो करू . 

अल्लाह के बन्दे तेरे से गुजारिश कि दोगलापन छोड़ कुछ नेक काम कर. न जाने क्यूँ  अमेरिका ऐसा करता है . अमेरिका तो सोचता है कि  में ऐसा करूँगा तो किसी को नो प्रोब्लम है. लगता है अमेरिका यमला पगला दीवाना हो चुका है. अमेरिका ने बहुत कुछ गोलमाल किया है अब एक्शन रिप्ले मत करना भाई .
अमेरिका के नक्षत्र अब गड़बड़ है भाई . अमेरिका का रक्त्चरित्र  अब समझ आ रहा है सबको. कैसे काहे कि झुटा ही सही . 
विकिलीक्स ने कई देशो में आक्रोश पैदा कर दिया है .  विकिलीक्स कि रामायण ने गजब ढाया है. लिक्स की खिचड़ी से किसका इमोशनल अत्याचार हो रहा है भाई . विकिलीक्स ने ऐसी उड़ान भरी है की अमेरिका को खट्टा मीठा लगने लगा है.  और तो और इंटरपोल  से असान्जे को रेड अलर्ट  जारी किया है. असान्जे तो क्रांतिवीर हो गया है . गोपनीय दस्तावेजो से तो अब राजनीति  के राज खुलने लगे हैं.  विकिलीक्स की पाठशाला भी गजब की है जाने कहा से आई है यह हकीकत. अमेरिका इंटरपोल के जरिये विकिलीक्स के असान्जे को कह रहा की तुम मिलो तो सही सब ठीक कर दूंगा. देखते है की कौन इस रण में जीतेगा. 

Wednesday, December 1, 2010

मुस्कराने लगा में भी

जीने का  मसला मालूम नहीं 

जीने की चाह फिर भी है

क्या कर लिया
क्या कर लेंगे , कुछ पता नहीं 
फिर भी हर शाम सुबह का इंतजार रहता है  

दर्द लिए रात करवटे बदलता रहा
सुबह कम होगा शायद इस चाह में 

सुबह सलवटे थी चद्दर पर
दिल में दर्द गहराया था 
फिर भी जीने की चाह ने 
सुबह का सूरज दिखा दिया 

देखे कई चेहरे मुस्कराते 
अपना दर्द कफ़न किया 
मुस्कराने लगा में भी 
यह समझ कि सबने अपना दर्द कफ़न किया 

Monday, June 21, 2010

.... इंतजार उनका



सूर्य की किरणे मद्धम क्यों है  ?
हमने तो बस अपने दिल में उनका चेहरा देखा है ......

चन्द्रमा की चांदनी शिथिल क्यों है ?
हमने तो बस दिल से उनको नजदीक आने का कहा है .....

हवा में ठहराव सा क्यों है ?
लगता है दिल की मुराद वो पूरी करने वाले है .......

कोई आवाज़ अब सुनाई क्यों  नहीं देती ?
लगता है उनके कदम अब मेरी और आने लगे  है .......

Wednesday, May 12, 2010

दिल की बात

कैसे होगा आपको यकीन यह बतलाये
हम तो खुली किताब रहे है हमेशा

पन्ने अपने दिल के छुपाये तो क्यों
कोई गहरे से देखे तो मनाही  नहीं  है
पढ़े दिल से और रखे दिल में तो सुकून है
वरना पन्ने युही हवा में उड़ जायेंगे

कहा अटकेंगे पन्ने मेरे दिल के
खुद मुझे पता नहीं ........................

Wednesday, January 27, 2010

चला गया यह गणतंत्र दिवस - फिर आएगा फिर मनाएंगे


चला गया यह गणतंत्र दिव                                फिर आएगा फिर मनाएंगे

६० वर्ष पूर्ण हो गए हमारे गणतंत्र दिवस को । हर वर्ष आता है और हम हर वर्ष मनाते भी है । बड़ी बड़ी बातें कर जाते है देश को नसीहते दे जाते है । धरातल से परे बातें अच्छी कर जाते है । प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया को मिल जाता है मसाला हमें परोसने का । आम जन का जुडाव सच्चे मन से कम होता लगता है यह कडवा सच है । और इस कडवे सच की परिणिति भयावह होगी । जिस देश में राष्ट्रीयता की भावना में जब जब कमी आई है तब तब उसे परिणाम भुगतने पड़े है ।


कारणों की तह में जायेंगे , बहुत कारण मिल जायेंगे - मगर निराकरण कैसे होगा ? इस देश को सत्तालोलुपता की भयावहता से बचाना होगा । सत्ता की खातिर राष्ट्र की संप्रभुता से खिलवाड़ , तुष्टिकरण को गले लगाकर राष्ट्र धारा में आने की चाहत को रोकना , आपस में गहरी खाई पैदा करने की साजिश ताकि आम जन इन समस्याओ को ही देख पाए इससे ऊपर उसे सोचने का अवसर ही नही मिल पाए।


दिल में दर्द क्यों नही होगा जब यह जानकारी मिलती है कि श्रीनगर के लाल चौक में १९ वर्षो में पहली बार राष्ट्र ध्वज नही फहराया गया। मुझे जहाँ तक याद आता है १९९० मेंअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने उस समय कि विषम परीस्थितियों में आन्दोलन के तहत लाल चौक में जान की परवा न कर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की मंशा तय की थी मगर तत्कालीन सरकार ने इस राष्ट्रवादी संगटन को इज़ाज़त नही । उधमपुर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार कर लिया गया था । विद्यार्थी परिषद् को श्रीनगर जाकर राष्ट्रीय ध्वज पहराने से रोका गया । ऐसा तो होता है इस देश में।
१९९१ में मुरली मनोहर जोशी ने लाल चौक के घंटाघर में तिरंगा फहराया तब से हर वर्ष गणतंत्र दिवस तथा स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता ।
इस सरकार को ऐसा कैसा लगा की कश्मीर में सब सामान्य सा हो गया है इस लिए सेना वापसी का निर्णय लिया , १९ वर्षो से लहरा रहा तिरंगा इस बार नहीं लहराया यह तो असामान्य ही है।
हमें इस विषय को हल्का नहीं लेना चाहिए इस तरह करते रहे तो नापको के होसले बुलंद होते रहेंगे।
होसले किसके बुलंद हो रहे साफ़ जाहिर हो रहा है तभी तो इस बार हमारे श्रीनगर की लाल चौक की आँखे नम है क्योंकि इस गणतंत्र दिवस पर उसके सीने पर राष्ट्रीय ध्वज नही लहरा