Tuesday, December 10, 2013

इक लम्हा जो मेरी जिन्दगी में आया

मेरी तृप्ति के लिए हमारे परिणय दिवस के शुभअवसर  पर .......

इक लम्हा जो मेरी जिन्दगी में आया
 
बचपन से हम संग संग थे 
किसने सोचा था हमसफ़र होंगे जिंदगी के 

कुछ पल गुजरे अकेले जीवन के 
उन लम्हों में भी तुम ही तो थी खयालो में

 मेरे लिए ही तो उसने बनाया  तुम्हे
इक लम्हा जो मेरी जिन्दगी में आया

लम्हा वो स्वर्णिम था मेरी जिंदगी का 
कि हमसफ़र बनी तुम मेरी जिंदगी की 

 खुशियों  से पल  पल  लम्हे बीत रहे संग संग
हर नई  सुबह 
 और लम्हे जुड़ रहे जीवन में रहने को संग संग 

Sunday, April 21, 2013

पहले दामिनी फिर गुडिया ........

पहले दामिनी फिर गुडिया ........
आज संसद का बजट सत्र फिर से शुरू होने वाला है हंगामे की स्टोरी अब टी वी पर खूब चलेगी . वक्तव्यों की बहार आएगी। हर बार  की तरह फिर दोषारोपण होगा.

पहले दामिनी फिर गुडिया पर हैवानियत का हमला हुआ। दामिनी ने देश को एक मुद्दे पर चेतन किया .इस बार  गुडिया ने फिर से देश को झकझोरा है. दिल्ली पुलिस के दो हज़ार रूपये के मसले से फिर उफान आया . दिल्ली की सडको पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था. पुलिस ने रफा दफा करने का सुझाव नहीं दिया होता तो दिल्ली की सड़के गुस्से का इज़हार नहीं कर पाती। एक पुलिस अधिकारी ने दो तमाचे न झड़े होते तो बवाल न मचता . दिल्ली से शुरू हुआ गुस्सा देश के कई अन्य स्थानों पर भी देखने को मिला।

 आज की इस भागम दौड़ में भी सामाजिक सरोकार से समाज का जुड़ा होना हमारी पुरातन सामाजिक व्यवस्था का ही परिणाम है। यह निसन्देह प्रशंसनीय है.

 देश में कई स्थानों पर इंसानियत की हैवानियत की खबरे आये दिन सुनने या पढने में आती है. जाहिर है जनता का गुस्सा व्यवस्था के प्रति रहेगा . जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी तो व्यवस्था की ही है और व्यवस्था पुलिस विभाग और उनके आका सरकार के पास ही तो है. इसलिए जनता का गुस्सा सीधा सरकार पर निकलेगा उसमे कोई दो राय नहीं है. इसीलिए दस जनपथ , इण्डिया गेट इत्यादि पर गुस्सा दिखाई दे रहा था .
 कुछ विषयों पर गंभीरता से चिंतन करना आवश्यक लगता है .
पहला , पुरे देश में नागरिक सुरक्षा के पहलुओ पर चर्चा आवश्यक है। पहला प्रश्न तो यह की क्या जनता के अनुपात में सुरक्षाकर्मी है ? दूसरा सुरक्षाकर्मियों  से अपराधियों को भय है या नहीं ?  सांठ  गाँठ  का आरोप अधिकतर लगता रहा है अपराधियों और पुलिस पर हमें इसका निदान खोजना होगा .
पुलिसकर्मियों के कार्यो में राजनितिक हस्तक्षेप बिल्कुल  नहीं होना चाहिये. न तो चयन प्रक्रिया में न पोस्टिंग में . राजनितिक हस्तक्षेप से व्यवस्था  गड़बड़ा जाती है. ईमानदार  और बिना रसुकात के पुलिसकर्मी और अधिकारी सही ढंग से कार्य निष्पादन नहीं कर पाते और वही से समस्या शुरू हो जाती है.
दूसरा, इन घटनाओ का बहुतायत में होने का कारण ? ऐसी कौनसे कारण  है जिनसे यह घटनाये बहुतायत में घटती  जा रही है. चारित्रिक पतन का क्या कारण  है ? सामाजिक ताना बाना क्योंकर छिन्न  भिन्न होता  जा रहा  है ? रिश्ते तार  तार  क्यों होते जा रहे है ?
 इस विषय पर चर्चा हो रही थी तब इक विषय आया आज की फिल्मे भी इसका एक कारण  है ? स्तरहीन फिल्मो और स्तरहीन आइटम सॉंग से तो गड़बड़ नहीं हो रही है कही। बेतुके गाने और उसपर ठुमके और न जाने कैसी कैसी  भाव भंगिमा भरे सेक्सी नृत्य यह भी एक मुख्य कारण  लगता है मुझे, हो सकता है आप इससे सहमत नहीं होंगे. सामाजिक विज्ञानी ही अच्छी  तरह से बतला सकते है। अब उनका दायित्व बढ़ जो गया है. 

विज्ञापनों में अश्लीलता बढती जा रही है . विज्ञापन पुरुष के अंडरवियर का और विज्ञापन में स्त्री का दुरूपयोग पुरुष के शरीर पर बहुत सारे गुलाबी चुम्बन के निशान, किसी परफ्यूम के विज्ञापन में भी ऐसा कुछ की लगाते ही आपकी और खिची चली आएगी लड़किया . किधर ले जा रहा है यह सब हमारे समाज को . कही पर कुछ तो लगाम लगाओ .

व्यवस्था पर गुस्से में आई जनता से करबद्ध प्रार्थना की आप जो कर रहे है वो ठीक है मगर सामाजिक ताने बाने  को भी मजबूत करने हेतु  संचार माध्यमो तथा फिल्मो में बढती अश्लीलता पर भी तुरंत लगाम लगाने के लिए आवाज़ उठाये .

Tuesday, March 19, 2013

कैसे खेलु मैं होली किसके संग खेलु होली ? कौनसे रंगों से खेलु मैं होली ?

कैसे खेलु मैं होली किसके संग  खेलु  होली ? कौनसे रंगों से खेलु मैं होली ? 

फिर होली का त्यौहार सामने नज़र आने लगा है . मन है कि  मान ही नहीं रहा है . जरा भी इच्छा नहीं है किसी को बदरंग करने की और होगा भी कैसे आम इन्सान भला कैसे किसी को बदरंग कर सकता है वो तो खुद बदरंग होने को बना है . पहले से ही कई रंगों से बदरंग है. महंगाई के रंग  ने त्यौहार पर  अपनी अमिट  छाप छोड़ ही रखी है. अब कहा वो वेरायटी वाले पकवानों की खुशबु। एक दो आइटम से रंग जमाना  पड़ता है. 

हाँ, भ्रस्टाचार  के रंग के ऊपर कोई और रंग चढ़ा है भला. आये दिन भ्रस्टाचार  की बौछारो के आगे अपनी पिचकारी भला कहाँ टिकेगी  ? भ्रस्टाचारियों की पिचकारी की मार आम आदमी को पड़ती है,  जनता का  रंग  भ्रस्टाचार की  पिचकारी की मार से कैसे  अछूत  रह सकता है भला . 

समझ में आज तक नहीं आया कि श्वेत वस्त्र धारियों पर आज तक राष्ट्र रंग क्यों न चढ़ा ?  श्वेत वस्त्रो की चमक भ्रस्टाचार के रंग से और खिल उठती है चेहरी की चमक तो फीकी होने का सवाल ही नही . 

कौनसे मैदान में यह खेल रहे है देश से होली आज तक समझ नहीं पाया हूँ मैं ? इस चिंता से ही शायद मेरा फीका रंग आज भी कायम है. मगर इन नेताओ को भल्ला मेरी या फिर मेरी जनता की तनिक भी चिंता है ? देश का या फिर जनता का रंग भले ही उड़ा  रहे बस इनका रंग नहीं उड़ना चाहिए .  

राष्ट्र की संप्रभुता के लिए अपना सिर न्योछावर  कर दे उस  के यहाँ होली के रंग के गुबार नहीं  होंगे तो क्या हुआ ? श्वेत  वस्त्र धारियों के यहाँ तो होली का मजमा  लगेगा ही, चंग पर थाप लगेगी ढोलक पर ठुमका लगेगा भंग छनेगी . जनता का क्या उसके रंग की किसको चिंता ? 

दामिनी आन्दोलन का रंग भी अब उड़ने लगा है। श्वेत वस्त्रधारियों के पास तो रंगों का खजाना है। इक रंग से जरा बदरंग होने का भय लगता है तो दूसरा रंग तैयार है . भला हो भगवन का की १६  की बजाय  १८  की सध्बुधी   का रंग जम  गया। वर्ना बचपन के  बदरंग होने का पूरा इंतजाम इन्होने कर ही रखा था  . 

समय जब आएगा चुनावो का तब उस रंग में रंग जायेंगे आश्वासनों की पिचकारी की बौछारो  से फिर वोटर को सराबोर कर देंगे . भोला भाला  वोटर आश्वानो की बौछारो की मार से फिर मारा  जायेगा। यह होली चली जाएगी और फिर एक वर्ष बाद सपनों के नए रंगों को लेकर आएगी। 

Tuesday, January 8, 2013

पाक की नापाक हरकत - कब तक सहन करनी होगी ?



पाक की नापाक हरकत - कब तक सहन करनी होगी ?
प्रफुल्ल मेहता
खबर जब पढ़ी तो रूह कांप उठी। न घर की चिंता न खुद की चिंता, सिर्फ देश की 24 घंटे रक्षा सिर्फ यही एक जज्बा हैं हमारे जवानो का। हमारे जवानो की न्रशंस हत्या कर उनका मस्तक ले गए . मस्तक सिर्फ उनका नहीं हर हिंदुस्तानी का प्रतीक था। . मगर इस नाकाम पंगु सरकार के हाथों  तो यही हश्र लग रहा हैं जो हमारे जाबांज जवानों के संग हुआ है।
मेरे मन में  इक ख्याल आया है की इस लोकतान्त्रिक देश की सर्वोच्च संस्था लोक सभा एवं राज्य सभा के सभी सदस्यों को अनिवार्य रूप से सियाचीन, जैसलमेर, बाड़मेर,बांग्लादेश की सीमाओ  पर 15-15 दिन के प्रवास तय करने चाहिए और वैसे ही रहे जैसे की जवान सीमा पर रहते है  ताकि जवानो को भी लगे की नेतागण भी राष्ट्र सुरक्षा में बराबरी का जोखिम उठा रहे है।

पाकिस्तान की यह नापाक हरकत इसका तुरन्त मुहँ  तोड़ जवाब देना चाहिए था। दुश्मन को जब तक दुश्मन नहीं समझेंगे और तुष्टिकरण से मोहभंग नहीं होगा तब तक पाक की नापाक कारगुजारियाँ  हमें युहीं झेलने पड़ेगी .और इसका दूरगामी परिणाम  झेलना पड़ेगा। इस दूरगामी परिणाम की  झलके मुंबई के साथ साथ पुरे देश में हुए प्रदर्शन जिसमे लखनऊ में मूर्ति पर हमला , मुम्बई  में शहीद स्मारक पर लात मारते हुए चित्र सामने आये है,   अकबरुद्दीन ओवेशी के  हाल में ही दिए बयां में झलक रही है। इस समय भी राष्ट्र नहीं चेता तो संकट गंभीर हो सकता है।
क्रिकेट मैच , समझौता  एक्सप्रेस या फिर थार एक्सप्रेस चला कर हमें क्या हासिल होगा . इतिहास  गवाह है की  हिंदुस्तान से पाकिस्तान के अलग होने के बाद से ही उसका दोस्ताना सिर्फ दिखावा और छल  कपट से भरा ही रहा है। जहरीला नाग भी इसके सामने तुच्छ  है।
हमारी विदेश नीति के ठुलमुल रवैये से ही पाकिस्तान दिन ब दिन  नापाक हरकते करने से बाज नहीं आया है।
देश के नेताओ से आग्रह है की देश के संप्रभुता से खिलवाड़ करने वालो के साथ किसी तरह की कोताही नहीं बरती जाये। अब देश का युवा जाग उठा है , कही ऐसा न हो जाये की देश की अस्मिता से खिलवाड़ करने वाले ऐसे नेताओ को खुद अपनी पहचान खोनी पड  जाये।
मुझे तो लगता है की, जाग उठा इस देश का युवा इन दो शहीदों को श्रधांजलि देने की इक नई  मिसाल इण्डिया गेट से शुरू करेगा जो देश के हर कोने तक चलेगा। सीमा पर हमारे जवानो की होसला अफजाई के लिए हमें अपना राष्ट्र धर्म निभाना ही होगा।
वन्देमातरम !